पाषाणभेद
पाषाणभेद, गोखरू, सोंठ, बड़ी कलैसी, मुलहठी, अरण्य की छाल, अरण्डी, पीपल, बहेड़े की छाल, महुआ, वरणा कूट, इन्द्रयव, हरें की छाल, अमलतास की गिरी, गुग्गल, काहू का बकला, नागर मोथा, तिवर्सी के बीज-सबको समान मात्रा में लेकर कूट-पीसकर रख लें। 22 ग्राम इस दवा को पानी में डालकर उबालें और काढ़ा बना लें। अब भुनी हुई हींग, सेंधा नमक और जवाखार तीनों चीजें एक-एक ग्राम लेकर कूटकर चूर्ण करके उसमें डालें।
इन्द्रजौ
इन्द्रजौ के ढाई ग्राम बीजों को गर्म पानी में भिगोकर वो पानी पिएँ। यह मूत्राशय की पथरी में बहुत ही लाभकारी औषधी है।
अजमोद
22 ग्राम अजमोद को दो गिलास पानी में 25-30 मिनट तक उबालें। अब उतारकर उस पानी को छान लें। कप-भर की मात्रा में यह पानी चार घण्टे के अन्तराल में रोगी को पिलाएँ। यह अत्यन्त ही लाभकारी प्रयोग है। यदि दर्द अधिक हो तो समय चार घण्टे से ढाई तक कर लें।
मूली
रोज़ 22 ग्राम मूली के बीजों का काढ़ा बनाकर सेवन करें। कच्चे
बथुआ
गोखरू
यदि पथरी बार-बार बन जाती है तो नित्य 5 ग्राम गोखरू चूर्ण को एक-डेढ़ चम्मच शहद के साथ चाटें और ऊपर से बकरी का एक गिलास ताजा-ताजा दूध पी लें।
अन्य और सहायक उपचार
- सबसे पहले कब्ज को दूर करें। यह पथरी रोग की चिकित्सा का पहला ज़रूरी हिस्सा है।
- सुबह एक बड़े गिलास पानी में डेढ़ चम्मच शहद मिलाकर नित्य सेवन करें।
- नित्य सेब का रस पिएँ ।
- छाछ का सेवन रोज़ करें। 1 गाजर, खीरा और चुकन्दर का रस मिलाकर दिन में 2-3 बार पीएँ ।
- रोज़ सुबह खाली पेट 55-60 ग्राम प्याज के रस का सेवन करें।
- करेले के रस का सेवन करें।
- 5 ग्राम पत्थर फोड़ी बूटी को पानी में डालकर उबालें और पीलें। यह दवा रोज़ लेना बहुत ही लाभकारी है।
- कुड़े की छाल को अच्छी तरह से पीस लें और फिर उसे दही में डालकर सेवन करें। यह बड़ा लाभकारी प्रयोग है।
- सहजन की सब्जी खाएँ ।
- बेर पत्थर की पिष्टी में पाषाणभेद का चूर्ण मिलाकर गन्ने के रस के साथ सेवन करें।
- जब लगे कि पथरी के छोटे-छोटे कण बन रहे हैं और कभी- कभी पेशाब के रास्ते बाहर आ जाते हैं तो ऐसा करें कि जब भी मूत्र आए तो उसे कुछ देर रोक लें। अब पानी गर्म करके टब में भर दें। इस टब में थोड़ी देर बैठने के बाद इसी में मूत्र करें। यह पथरी के छोटे-छोटे कणों को निकालने का सरल और लाभकारी उपाय है।
सावधानी बरतें
चावल, मटर, टमाटर मत खाएँ । चिकनाई वाले पदार्थों से परहेज रखें।