5 चीजें स्वास्थ्य के मामले में अपनाओगे तो रोग आपके पास आयेंगे ही नहीं।
नाम-भजन
सर्व रोग की औषधि नाम
नाम सभी प्रकार के रोगों की औषधी है। इतना ही नहीं, यह नाम जन्म-मरण रूपी महारोग का भी नाश करने वाला है।
सतगुरु शब्द सहाई ।
निकट गये तन रोग न व्यापे, पाप ताप मिट जाई ॥
शरीर के रोग भी नहीं आयेंगे। नाम रक्षा करता है। पर शर्त है कि गुरु के शब्द का उल्लंघन न हो।
यह नाम रोगों का नाश कैसे करता है, इसे समझते हैं। पहले समझना होगा कि रोगों का मुख्य कारण क्या है। |
जैसे डाक्टर आँख के रोग में दूषित पदार्थ के जमाव को नहीं समझ पाते हैं, वो आँखों का इलाज़ करने लगते हैं। वो आँख के परे की गहराई में नहीं जा पाते, गंदे पदार्थ की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं होता। ऐसे ही नज़रिया वैद्य भी केवल दूषित पदार्थ तक ही पहुँच पाते हैं। डॉ० आँख तक ही रहा, उसके लिए आँख ही रोग की जड़ है। अन्य-अन्य चिकित्सा पद्धत्तियाँ अपनी-अपनी तरह से रोग की जड़ बताती हैं। आयुर्वेद शरीर में कफ, पित्त और वायु की मात्रा में असंतुलन को रोग की जड़ मानता है।
सभी अपने-अपने तरीके से रोग की जड़ बता रहे हैं, पर रोगों की असली जड़ को कोई भी नहीं जानता है। वो जड़ है-मन। यह एक परम रहस्य है।
मन के पाँच हाथ हैं-काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार । ये पाँचों से ही भयंकर शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिए जिसमें काम अधिक है, उसे टी.बी. होने की पूरी-पूरी संभावना रहती है। इन सबको काबू करने के लिए सद्गुरु नाम देता है। इसलिए नाम ही वास्तव में सब रोगों का नाश करने वाला है। जो नाम करने वाला है, उसे रोग आयेंगे ही नहीं।
व्यायाम करना
व्यायाम जैसा पीछे कहा गया, वैसा ही करना । यह भी रोगों को पास में नहीं आने देता है, शरीर में मौजूद दूषित द्रव्य को पसीने के द्वारा बाहर कर देता है।
मूली पपीते का सेवन करना
यदि आप भोजन के द्वारा अपने स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहते हैं तो सबसे पहले तो आप सुबह खाली पेट मूली, पपीते और खीरे का सेवन शुरू कर दें। लोगों को किसी चीज़ के खाने का सही समय भी मालूम नहीं है। अधिकतर लोग मूली और खीरा रात को ही खाते हैं। यह परम हानिकारक हो जाता है। इस फार्मूले को सदैव याद रखें-
खीरा सुबह हीरा दिन को खीरा रात को पीड़ा ।
मूली सुबह पूली दिन को मूली रात को सूली ॥
यानी खीरा सुबह के समय खायेंगे तो हीरे की तरह लाभकारी सिद्ध होगा, यदि दिन के समय खायेंगे तो केवल खीरा ही रह जायेगा और रात को सेवन करेंगे तो वो आपको पीड़ा देने वाला सिद्ध होगा। ऐसे ही मूली भी सुबह खायी तो उत्तम है, दिन के समय मध्यम और रात को खाना तो समझो कि अपने को सूली पर चढ़ाने के बराबर है।
उपवास रखना
10 दिन में एक बार व्रत रखना चाहिए। यह व्रत कैसे रखना, ध्यान से समझें। पूरा दिन कुछ नहीं खाना; रात को भी नहीं खाना; केवल पानी पी लेना। सुबह उठकर एक बड़ा गिलास पानी पीकर शौच जाना। बड़ा सख्त मल बाहर आयेगा; आँतें खुलेंगी। फिर मुँह- ह-हाथ धोकर 4 लीटर पानी पीना। पेट में गैस होगी, इसलिए डकारते जाना, गैस बाहर निकालते जाना और पानी पीते जाना। ऐसे में दिल घबराने लगेगा। चिंता नहीं करना। शुरू-2 में मुश्किल आयेगी, फिर आसान हो जायेगा। इतना पानी पीना कि आँतों के नीचे उतर जाए। अब शौच जाने की इच्छा होगी। पहले तो रोटी के सड़े हुए अंश, काले-काले दाने, छिलके आदि, जो शरीर में फँसे होंगे, पानी के साथ बाहर आयेंगे। ये ही गैस बनाते हैं। फिर पीला-पीला पानी बाहर आयेगा। यदि पानी नीचे से उतरे तो थोड़ा हिलना-डुलना। तो तीसरी बार अब बची-खुची गंदगी के साथ थोड़ा- थोड़ा साफ़ पानी निकलेगा। चौथी बार नल की तरह साफ़ पानी बाहर आयेगा। फिर हाथ साफ़ करके मुँह में अंगुली डालकर बचा पानी भी बाहर निकाल लेना। इसके बाद अब हल्का भोजन करना। जब ऐसा व्रत होगा तो शरीर का वात, पित्त और कफ सब ठीक हो जायेगा, इसलिए रोग नहीं हो पायेंगे ।
जैसे किसी मशीन से काम लेने के बाद समय-समय पर आप उसकी सफ़ाई करते हैं, ताकि वो ठीक से काम करती रहे, लंबे समय तक चले । आप उसकी सर्विस करवाते हैं। ऐसे ही इस शरीर में जो पाचन-क्रिया की मशीनें हैं, उन्हें भी सफ़ाई की ज़रूरत पड़ती है। भोजन के अंश जहाँ-तहाँ फँस जाते हैं, जिन्हें निकालने के लिए पीछे बताई गयी विधि के अनुसार 10 दिन में एक बार व्रत रख लेना चाहिए।