Importance of Celebacy || ब्रह्मचर्य का महत्व ||

 


"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम् ॥ १ ॥


इस मे सर्वत्र स्वानुभाव प्रकाश और साथ ही साथ शास्त्र व परानुभव- प्रकाश भी किया है। इसमे अनुभव की बाते कूट कूट कर भरी होने के कारण और भी महत्व का हुआ है। इसका मुख्य विषय 

"Chastity is Life and Sensuality is Death" 

यानी ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश ही मृत्यु है"। 

जब शरीर मे से चैतन्य निकल जाता है तब उसके साथ ही साथ रक्त और बीर्य, ये दो जीवन-प्रद तत्व भी मृत्यु के बाद शीघ्र ही गायव हो जाते हैं और उनका पानी बन जाता है। जिस मनुष्य को हैजा होता है उसके रक्त का पानी बनने लग जाता है और वही पानी  फिर दस्त के द्वारा बाहर निकलने लगता है। कोई अंग काटने पर भी उसके शरीर से खून निकलने के  पश्चात् वह बहुत जल्द मृत्यु को प्राप्त होता है। अतः यह सिद्ध है कि “जब तक मनुष्य के शरीर मे रक्त व वीर्य दो चीजें मौजूद हैं, तभी तक वह जीवित रह सकता है और इनका नाश होने से उसका भी तत्काल नाश हो जाता है। जितना मनुष्य वीर्य्य. का नाश करता है उतना ही वह रक्त-विहीन बन कर मृत्यु की ओर   झुकता जाता है। जितना अधिक मनुष्य वीर्य को धारण करता है उतना ही अधिक वह सजीव बनता जाता है; उसमें शक्ति, तेज, निश्चय, सामर्थ्य, पुरुषार्थ, बुद्धि, सिद्धि और ईश्वरत्व प्रकट  होने लगते हैं और वह दीर्घकाल पर्यन्त जीवनलाभ कर सकता है। वीर्यहीन पुरुष को कोई भी तार नहीं सकता और वीर्यवान पुरुष को कोई भी (रोग) अकाल मे मार नहीं सकता ! दुर्बल को ही सब रोग सताते हैं। 

"देवो दुर्बलघातकः" यही प्रकृति का नियम है। सच पूछिए तो “वीर्य्य हो अमृत है ।" इसी के रक्षा करने से अर्थात् धारण करने से मनुष्य अजर अमर होता है । भीष्म पितामह इसी संजीवनी शक्ति के कारण श्रमर (यानी अकाल मे मृत्यु न पाने वाले) और इतने सामर्थ्य-संपन्न हुए थे । यदि हम भी इस की  रक्षा करें अर्थात् वीर्य रोक कर ब्रह्मचर्य धारण करेंगे. तो हम भी वैसे ही प्रभावशाली और उन्नतिशाली बन सकते हैं। क्योंकि वीर्य रक्षा ही आत्मोद्धार का रहस्य है और इसी मे जीवमात्र का जीवन है ।


 केवल नियम ही भर पढ़ लेने से मनुष्य वीर्यरक्षा करने में निःसन्देह समर्थ हो सकता है, परन्तु यदि वह इसके बारे में  "आद्योपान्त" पढ़ लेगा तो वह उन नियमों का मर्म भली भाँति समझ जायगा और उसमे वीर्यरक्षा के लिये एक अद्भुत जोश पैदा होगा, जिससे वह उन्नति अवश्य करेगा । आप स्वयं अनुभव करके देख लीजिये ।

Brahamcharya ka paalan kaise karen

क्या तुम जीवित रहना चाहते हो तब फिर तुम्हे अवश्य ही वीर्य के नाश से बचना होगा और इस मे दिये हुये नियमों के अनुसार मन, क्रम, वचन से चलना होगा। जो मनुष्य इन नियमों के अनुसार केवल दो ही साल तक चलेगा उसका जीवन प्रवाह बिल्कुल ही बदल जायगा, शरीर और मन मे अद्भुत परिवर्तन होगा, पापात्मा भी निःसंशय पुण्यात्मा वन जायगा ! व्यभिचारी भी ब्रह्मचारी वन जायगा !! और दुर्वल भी सिह तथा दुरात्मा भी साधु महात्मा वन सकेगा !!!!


पर हाँ, नियमों को किसी कारण तोड़ना न होगा ! उन्हे दृढ़ता के साथ निवाहना होगा। यदि कोई जीवन पर्यन्त इन नियमों के अनुसार चले तो फिर कहना हो क्या है ! वह इस मृत्युलोक मे ही देवता के तुल्य पूजनीय बन जायगा, इसमे कोई सन्देह नहीं है।


ब्रह्मचर्य पालन के नियम अत्यन्त ही सरल व सुलभ हैं । उनमे एक कौड़ी का भी खर्च नहीं है । जैसे हम पालन कर रहे हैं वैसे आप भी पालन कर सकते हैं। यदि दिल से निश्चय करलो तो क्या नही हो सकता ? “Resolution is victory” अर्थात् निश्चय ही चल है और निश्चय ही फल है !


प्रत्येक मनुष्य मे ईश्वरीय शक्ति बास कर रही है । दया, क्षमा, शान्ति, परोपकार, भक्ति, प्रेम, वीरता, स्वतंत्रता, सत्य और कुकर्म से अरुचि इन सब के अंकुर हृदय में रक्खे हुए हैं। चाहे उन्हें सीच कर बढ़ात्र चाहे सुखा दो !


परमात्मा सब  को सुबुद्धि प्रदान करे और उनका उद्धार करे !


न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मचर्य्य तपोत्तमम् । ऊर्ध्वरेता भवेद् यस्तु स देवो न तु मानुपः


"ब्रह्मचर्य अर्थात् वीर्य धारण यही उत्कृष्ट तप है। इससे बढकर तपश्चर्या तीनों लोकों मे दूसरी कोई भी नहीं हो सकता । ऊर्ध्वरेता पुरुप अर्थात् अखंड - वीर्य का धारण करने वाला पुरुष इस लोक मे मनुष्य रूप मे प्रत्यक्ष देवता ही है ।"


इस ब्रह्मचर्य की महिमा कितनी महान है । परन्तु आज हम इस महानता को भूल कर नीचता की धूल मे दास्यभाव से विचरण कर रहे हैं। कहाँ हमारे वीर्यवान, सामर्थ्य-संपन्न पूर्वज और कहाँ हम उनकी निर्वीर्य और पद्-दलित दुर्बल सन्तान !  कितना यह आकाश पाताल का अन्तर हो गया है ! हमारा उतना  भयंकर पतन हुआ है ? इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि हमारा  यह जो भीषण  पतन हुआ है इसका मुख्य कारण एक मात्र ' हमारे "ब्रह्मचर्य का हास" ही है। ब्रह्मचर्य के नाश से ही हमारा संपूर्ण सत्यानाश हो गया है। हमारा सुख, आरोग्य, तेज, विद्या, बल, सामर्थ्य, स्वातन्त्र्य और धर्म सम्पूर्ण हमारे ब्रह्मचर्य के ऊपर ही सर्वथा निर्भर है। ब्रह्मचर्य ही हमारे आरोग्य- मन्दिर का एक मात्र आधारस्तंभ है। आधारस्तंभ के टूटने से जैसे सम्पूर्ण भवन ढह जाता है, वैसे ही वीर्यनाश होने से सम्पूर्ण शरीर का भी नाश अति शीघ्र हो जाता है। जैसे जैसे हमारे ब्रह्मचर्य का नाश होजाता है, वैसे वैसे हमारे स्वास्थ्य का भो नाश हो जाता है । "मरणं बिन्दुपातेन जीवनं विन्दु धारणात् " यह भगवान् शंकर का अमिट  सिद्धान्त है । वीर्य को नष्ट करने वाला पुरुष कभी बच नहीं सकता और वीर्य को धारण करने वाला कभी अकाल मे मर नहीं सकता । 

तत्वतः व वस्तुतः

 ब्रह्मचर्य ही जीवन है और वीर्यनाश हो मृत्यु है । ब्रह्मचर्य के अभाव  में  हम किसी अवस्था मे सुखी और उन्नत नहीं हो सकते । ब्रह्मचर्य ही हमारे इस लोक व परलोक के सुख का एक मात्र आधार है । यही नहीं किन्तु ब्रह्मचर्य ही हमारे चारों पुरुषार्थों का मुख्य मूल है-मुक्ति का प्रदाता है । वीर्य अत्यन्त अनमोल वस्तु है । इसी वीर्य के बल पर मनुष्य देवता बनता है और उसके नाश से वह पूर्ण पतित वन जाता है। बिना ब्रह्मचर्य धारण किये हुए कोई भी पुरुष कदापि श्रेष्ठ पद को प्राप्त नहीं कर सकता । वीर्य-भ्रष्ट पुरुष कदापि पवित्रात्मा, धर्मात्मा व महात्मा नहीं हो सकता । बिना ब्रह्मचर्य के प्रत्य इन्द्र भी तुच्छ और पददलित हो सकता है तब फिर सामान्यमनुष्यों की बात ही क्या है ? अतः ब्रह्मचर्य ही हमारी सम्पूर्ण वैभव और सौभाग्य का आदि कारण है ! ब्रह्मचर्य  ही श्रेष्ठता स्वतंत्रता और सम्पूर्ण उन्नति का बीज  मन्त्र है !! ब्रह्मचर्य्यं ही हमारी सम्पूर्ण सिद्धियों का एक मात्र रहस्य है !!!