प्रत्येक माता, पिता, गुरु, बन्धु तथा मित्र का सब से प्रथम कर्तव्य अव यही होना चाहिये कि यदि उपर्युक्त लक्षणों में कोई भी एक दो लक्षण पुत्र-पुत्री और शिष्य-मित्रों मे दिखाई दे तो फ़ौरन उनके सामने पाप के परिणाम का भीषण चित्र तथा ब्रह्मचर्य की श्रेष्ठ महिमा स्पष्ट शब्दों में रखनी चाहिए। इसमे लज्जा संकोच करना तथा अपमान समझना मानों अपनी सन्तान का पूर्ण नाश को करना है।
“शरीरं व्याधि मन्दिरम् ”
तव ही बनता है जब कि मनुष्य ब्रह्मचर्य के प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन करता है। अतः उन्हें उन नियमों का अवश्य ज्ञान करा देना चाहिये । माता, पिता व गुरु ब्रह्मचर्य का पूर्ण स्पष्ट वर्णन करने मे लजाते है ! परन्तु यह उनको भारी भूल एवं मूर्खता है । अपने पर बीती हुई दुर्घटनाओं को, उनके दुष्परिणाम माता-पिता तथा गुरुजनों को बाज भी उनकी मर्जी के विरुद्ध भोगने पड़ रहे है, लड़कों से साफ़ साफ़ कहें और उनसे बचे रहने के लिये अपने अनुभूत इलाज को स्पष्ट बतलायें अथवा यह जीवन पथप्रदीप प्रन्थ अपने प्रिय बालकों, शिष्यों अथवा मित्रों के हाथ में रख दें, जिससे उनका कर्तव्यमार्ग उन्हें साफ़ दिखाई दे ।
कई लोग यह समझते है कि यदि वालकों के सामने ब्रह्मचर्य की रक्षा के हेतु हस्तमैथुन शिशुमैथुनादि महानिद्य बुराइयों का वर्णन करें, तो वे यदि न भी जानते होंगे तो इन् दुर्गुणों को जान लेंगे परन्तु यह धारणा विलकुल वृथाव नाशकारी है। यदि आप न कहेंगे तो वालक कुसंगों में पड़कर दूसरों से अवश्य ही उपर्युक्त दुर्गुण सीख लेंगे । इन बुराइयों का तीव्र निषेध व ब्रह्मचर्य की उज्वल महिमा का वर्णन करेंगे तो आपके बालक अवश्य ही सदाचारी ब्रह्मचारी बनेंगे ऐसा पूर्ण विश्वास रखो । गन्दगी य गड्ढे को ढाँकने के बजाय उससे बचे रहने का ज्ञान कर देना ही बुद्धिमानी व सुरक्षितता हैं और यही माना पिता तथा गुरुजनों का पवित्र कर्तव्य है । यदि गुरुजन अच्छे अच्छे कामों द्वारा अच्छे ढंग से वालक-बालिकाओं को ब्रह्मचर्य की केवल- पन्द्रह मिनट स्कूलों में या घर ही पर वढ़िया शिक्षा दें, तो क्या ही अच्छा हो ? हम पूर्ण विश्वास से कह सकते हैं कि भारत का इससे अति शीघ्र उद्धार हो सकता है। अतः माता-पिताओ ! सावधान !!